उम्र के अजीब से पड़ाव पर जिंदगी आ गई है. बड़ा ही विचित्र समय है ये जिंदगी का. हर किसी का एक ही सवाल होता है शादी कब कर रहे हो? अरे शादी न हुई बवाल हो गया. हर हफ्ते किसी न किसी मित्र का फ़ोन आ जाता है भाई सगाई है मेरी दो हफ्ते बाद और शादी अगले महीने. आना है तेरे को ध्यान से, बंदा यहाँ भी चुप हो जाये तो ठीक , पर ऐसे कैसे "तू कब कर रहा है?लड़की देखना शुरू किया कि नहीं?"इतना तो किसी को हमारी तब भी चिंता न हुई थी जब हम AIEEE दिए थे कि कॉलेज देखना शुरू किये कि नहीं. फिर शुरू होता है सगाई से लेकर हनीमून तक के फोटोग्राफो का आपकी फेसबुक वाल पर तांडव. हर त्यौहार पर अपडेट माय फर्स्ट करवाचौथ से लेकर माय फर्स्ट फलाना ढिकाना जयंती. आदमी को फीलिंग आ ही जाती है कि साला हम ही यहाँ अकेले तिल तिल कर मर रहें है,बाकि सारी दुनिया मजे कर रही है. कहा सुना माफ़
पर जनाब इन बाहरी विज्ञापनों में आइयेगा मत, ये वही हालात हैं हाथी के दांत खाने के और दिखने के और. अन्दर कि परिस्थिति अलग है. शुरू करते है सगाई तय होने से , सबसे पहला काम एक अनलिमिटेड talktime वाला प्लान ढूढना, खैर ये जिम्मेदारी तो हमारे अम्बानी साहब ने उठा ही रखी है.आशिकों का नेटवर्क ही है रिलायंस.फिर आता है दिन और रात बतियाने का समय.क्या खाया ,क्यूँ खाया , लेट क्यूँ खाया, और बताओ और बताओ और बताओ.दिन भर ऑफिस में सर खपाओ और यहाँ और बताओ.
फिर शादी की शॉपिंग का टाइम आता है, जो बंदा जिंदगी भर बेमेल के कपड़े पहना हो उसे लहंगे से मैचिंग शेरवानी और जूते खरीदने को कहा जाता है. शादी की शॉपिंग आपके बजट में इतना बड़ा होल कर जाती है कि आप अगले दो साल शायद खुद के लिए कुछ न खरीदें. और शादी के बाद तो भाई आपके दिन ही बदल जाते हैं, जो रिश्तेदार आपको घर में नहीं घुसने देते थे वो आपको खाने पर आमंत्रित करते है और ऐसे खिलाते हैं जैसे आप जन्मो से भूखे हो. इन सब रस्मो रिवाजो में एक साल कहाँ निकल जाता है पता नहीं चलता. और फिर आप अपने आप को पाते हैं जिंदगी का बोझ ढोते हुए. जहाँ पहले कहीं जाते टाइम एक बैग पैक लेकर जाते थे अब २ ३ ट्राली बैग लेके जाते हुए. कहीं भी जाने से पहले जाने , ठहरने की एडवांस बुकिंग करवाते हुए और सबसे जरूरी अपने सिंगल दोस्तों के मुस्कुराते चेहरों को ताकते हुए. कहना बहुत कुछ है पर यहीं रुकने में भलाई है अब हमारी.कहा सुना माफ़
पर जनाब इन बाहरी विज्ञापनों में आइयेगा मत, ये वही हालात हैं हाथी के दांत खाने के और दिखने के और. अन्दर कि परिस्थिति अलग है. शुरू करते है सगाई तय होने से , सबसे पहला काम एक अनलिमिटेड talktime वाला प्लान ढूढना, खैर ये जिम्मेदारी तो हमारे अम्बानी साहब ने उठा ही रखी है.आशिकों का नेटवर्क ही है रिलायंस.फिर आता है दिन और रात बतियाने का समय.क्या खाया ,क्यूँ खाया , लेट क्यूँ खाया, और बताओ और बताओ और बताओ.दिन भर ऑफिस में सर खपाओ और यहाँ और बताओ.
फिर शादी की शॉपिंग का टाइम आता है, जो बंदा जिंदगी भर बेमेल के कपड़े पहना हो उसे लहंगे से मैचिंग शेरवानी और जूते खरीदने को कहा जाता है. शादी की शॉपिंग आपके बजट में इतना बड़ा होल कर जाती है कि आप अगले दो साल शायद खुद के लिए कुछ न खरीदें. और शादी के बाद तो भाई आपके दिन ही बदल जाते हैं, जो रिश्तेदार आपको घर में नहीं घुसने देते थे वो आपको खाने पर आमंत्रित करते है और ऐसे खिलाते हैं जैसे आप जन्मो से भूखे हो. इन सब रस्मो रिवाजो में एक साल कहाँ निकल जाता है पता नहीं चलता. और फिर आप अपने आप को पाते हैं जिंदगी का बोझ ढोते हुए. जहाँ पहले कहीं जाते टाइम एक बैग पैक लेकर जाते थे अब २ ३ ट्राली बैग लेके जाते हुए. कहीं भी जाने से पहले जाने , ठहरने की एडवांस बुकिंग करवाते हुए और सबसे जरूरी अपने सिंगल दोस्तों के मुस्कुराते चेहरों को ताकते हुए. कहना बहुत कुछ है पर यहीं रुकने में भलाई है अब हमारी.कहा सुना माफ़
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